नाम - राकेश कुमार पांडे
पद - सी. ई. ओ., श्रमिक भारती संगठन
नवप्रवर्तक कोड – 71182962
परिचय
राकेश कुमार पांडे कानपुर के श्रमिक भारती संगठन के सी. ई. ओ. हैं. वह मूल रूप से कानपुर के रहने वाले हैं तथा उनकी शिक्षा–दीक्षा कानपुर यूनिवर्सिटी से हुई है. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई है तथा उनके पिता मजदूर आन्दोलन से जुड़े रहे हैं. इसी कारण उनका भी समाज सेवा व सामाजिक कार्यों के प्रति लगाव है तथा वह सामाजिक कार्यों में सहभागिता देते हैं.
उनके मन में प्रारंभ से ही लोगों की मदद करने की भावना थी, उनका मानना है कि समाज के पिछड़े व वंचित वर्ग को उसका हक मिलना चाहिए. उनके अनुसार वंचित लोगों के जीवन में बेहतरी लाने के लिए वह इस प्रकार से कार्य करते रहें हैं, जिससे लोगों की मदद भी होती रहे और उनकी जीविका भी चलती रहे.
संगठन का उद्देश्य
राकेश कुमार पांडे ने सन 1986 में श्रमिक भारती नामक संगठन का निर्माण किया. इस संगठन के निर्माण का मुख्य उद्देश्य समाज के वंचित वर्ग के जीवन में सुधार तथा बदलाव लाना था. उन्होंने इस संगठन के माध्यम से वंचितों की दशा में सुधार करने का कार्य प्रारंभ किया. उन्होंने प्रारंभ कानपुर की गरीब बस्तियों में कार्य करने से किया, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं को सहभागिता प्रदान की गयी और संगठित किया गया. उन्होंने महिला स्वयं सहायता संगठन का गठन करवाया और धीरे धीरे इस तरह के कई संगठन कई गरीब बस्तियों में बनाये गए तथा इस संगठन की सहायता से लोगों ने आपस में छोटी–छोटी बचत कर आपसी लेन–देन को शुरू करने का कार्य किया.

आज इन संगठनों में कानपुर नगर व देहात के लगभग 25000 सदस्य हैं, जिन्होंने स्वयं सहायता समूहों के रूप में खुद को रजिस्टर्ड भी करवा रखा है और साथ ही साथ इन लोगों ने अलग अलग फेडरेशन भी बना लिए हैं. इसके बाद इन संगठनों में उन लोगों ने अपनी बस्ती की समस्याओं जैसे – स्वच्छता, पानी आदि को उठाना प्रारंभ कर दिया.
सामाजिक कार्य
राकेश कुमार पांडे अथक प्रयासों से ही स्वयं सहायता समूहों में 25000 से अधिक सदस्य हो गये हैं और इन समूहों ने कानपुर नगर व देहात में अपने 6 अलग रजिस्टर्ड फेडरेशन भी बना लिए हैं. इनकी संस्था के माध्यम से कानपुर शहर व देहात में 6 स्वयं सहायता समूह स्थापित हुए. उन्होंने सन 1995 से उत्तर प्रदेश सरकार के भूमि सुधार निगम के साथ किसानों की बंजर जमीन पर कार्य करना प्रारंभ किया. जिसके अंतर्गत 17000 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर कार्य हुआ तथा 50,000 से अधिक किसानों की जमीनों का सुधार हुआ.
वह रसायनों से हटकर प्राकृतिक खेती करने पर जोर देते रहे हैं. इसी बात को आधार बनाकर उन्होंने 1200 से 1300 किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए जागरूक व प्रशिक्षित किया, जिससे भूमि की उर्वरता शक्ति बनी रहे, खेती में लागत कम और प्राप्त अनाज पौष्टिक हो.
भविष्य के लिए योजनाएं
राकेश कुमार पांडे प्राकृतिक खेती के पक्षधर हैं तथा वह चाहते हैं कि भविष्य में वह लगभग 5000 किसानों को इसका महत्व बताते हुए प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करें, जिससे कि किसानों की लागत में भी कमी आये और उपभोग्ताओं को भी अच्छा अन्न प्राप्त हो सके. वहीं उनका प्रयास है कि खेती के उत्पाद को शहरी उपभोगताओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जाये तथा किसान और उपभोगताओं के बीच एक रिश्ता कायम हो.
चुनौतियां
राकेश कुमार पांडे के अनुसार समाज के लिए कार्य करते समय उनके मार्ग में कई आंतरिक चुनौतियाँ आतीं रहती हैं. वहीं किसी भी नई योजना के लिए लोगों को जागरूक करना एक कठिन चुनौती है. उनके अनुसार किसानों को रसायन छोड़कर प्राकृतिक खेती के लिए समझाने में उन्हें काफी मुश्किल आयी. इसके अलावा उनके लिए जल व स्वच्छता से सम्बंधित मुद्दों पर कार्य करने के लिए पंचायतों के साथ काम करना व आम लोगों को पंचायत व्यवस्था से जोड़ना भी काफी चुनौतीपूर्ण रहा.
नीति-परिवर्तन पर विचार
नीति-परिवर्तन पर राकेश कुमार पांडे का कहना है कि हमारे देश में नियोजन का कार्य उच्च स्तर द्वारा करने की ही व्यवस्था है तथा उसमें जनता का कोई योगदान नहीं रहता. गांवों में पंचायतों का नियोजन गांव के सभी आम-ख़ास व्यक्ति को साथ बैठकर करना चाहिए व सभी लोग तय करें कि विकास कार्यों में धन का किस प्रकार से प्रयोग किया जाये. अतः उच्च स्तर द्वारा सभी निर्णयों में जनता के विचारों को शामिल किया जाना चाहिए.
सामाजिक- परिवर्तन पर विचार
राकेश कुमार पांडे के अनुसार आज हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि सभी लोग आर्थिक लाभ की ओर भाग रहें हैं तथा लगातार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहें हैं. अतः हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो लोगों को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से सम्बंधित जीवन-स्तर सिखाये. इस प्रकार के मुद्दों पर सरकार व सामाजिक संस्थाओं को ध्यान देना चाहिए.
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